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राजा भोज - महान राजा की सुंदर चित्रों वाली कथा
राजा भोज नवीं शताब्दी में मालवा राज्य पर राज करते थे। धारा उनकी राजधानी थी। यही राजा भोज विक्रमचरित के नायक हैं। अनुमान है कि विक्रमचरित की रचना उनके जीवन काल में की गयी थी। यह कथा इस प्रकार है: राजा भोज को विक्रमादित्य का सिंहासन धरती में गड़ा हुआ मिला। सिंहासन में ३२ मूर्तियों बनी हई थीं। वे वास्तव में ३२ अप्सराएं थीं जो शाप से मूर्तियाँ बन गयी थीं। उनके लिए विधान था कि जब राजा भोज उनके सामने अपनी महानता और उदारता सिद्ध करेंगे तभी उन्हें शाप से मुक्ति मिलेगी और वे वापस अपने असली रूप में आ जायेंगी। सब मूर्तियों ने राजा को एक-एक कथा सुनायी और राजा ने अपनी महानता सिद्ध करके उन्हें शाप से मुक्ति दिलायी। परंतु भोजप्रबंध की कथा इससे भिन्न है। संस्कृत की इस रचना का कुछ अंश पद्य में है और कुछ गद्य में। यह कृति बल्लाल की है। और यहाँ हमने उसी को प्रस्तुत किया है। बल्लाल ने इतिहास लिखने की अपेक्षा अपने नायक का गुणगान किया है। भोज को कलाओं और साहित्य का पोषक बताने के प्रयत्न में बल्लाल ने इतिहास के तथ्यों की भी उपेक्षा की है। उन्होंने लिखा है कि महाकवि कालिदास और बाण भोज के दरबार की शोभा बढ़ाते थे, परंतु सच्चाई यह है कि ये दोनों कवि भोज से कई शताब्दी पहले हो चुके थे।
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